नदियाँ, मीठी बावड़ी, चाँदी जैसी झील

नदियाँ, मीठी बावड़ी, चाँदी जैसी झील धीरे-धीरे हो गईं, दलदल में तब्दील   धरती से कि किसान से, हुई किसी से चूक फ़सलें उजड़ीं खेत में, लहकी है बन्दूक   कहाँ नजूमी, ज्योतिषी, पंडित संत फ़क़ीर बंदूकें अब बाँचती, लोगों की तक़दीर   अमरबेल से फूलते, नित सरमायेदार निर्धन को ही मारती, महँगाई की मार … Continue reading नदियाँ, मीठी बावड़ी, चाँदी जैसी झील